आप सभी का हार्दिक अभिनन्दन।
आज हम एक महान संख्या १०८(108) के विषय पर चर्चा करेंगे।
#संतों के नाम के आगे क्यों लगाते हैं १०८?
#संतों के नाम के आगे क्यों लगाते हैं १०८?
#जाप के माला में १०८मोतियां ही क्यों होती है?
#यज्ञ या हवन में १०८ बार ही क्यों आहुतियां दी जाती हैं?
#संख्या १०८ मानव जाती के लिए इतना शुभ क्यों माना जाता है और इस संख्या का रहस्य क्या है?
क्या आप इन सवालों के उत्तर जानते हैं?
अगर नहीं तो जानने के लिए आगे पढ़िए :-
यह निर्विवाद सत्य है कि अंक १०८ हिन्दू धर्म में एक अहम एवं सर्वोपरि स्थान रखता है। मान्यताओं के अनुसार यह अंक ब्रह्माण्ड के अस्तित्व अर्थात इसके संपूर्णता को दर्शाता है।
कई महान विद्वानों एवं गणितज्ञों द्वारा इसके सर्वोपरि होने का कारण बताया गया है। जो कि इस प्रकार निम्नलखित हैं:-
1
मान्यता है कि अंक 108 इस ब्रह्माण्ड के तीन सबसे महत्वपूर्ण खगोलीय पिंडों के बीच के संबंध को दर्शाता है और इस बात से यह कहा जा सकता है कि कहीं न कहीं इस अंक का संसार के रचना में महत्वपूर्ण योगदान है।
असल में कुछ महान विद्वानों एवं गणितज्ञों के अनुसार संख्या १०८ पृथ्वी और सूर्य के बीच कि दुरी तथा सूर्य के व्यास का अनुपात है। चन्द्रमा और पृथ्वी के बीच दूरी तथा चन्द्रमा के व्यास का अनुपात भी १०८ ही है।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgS1MCji0LP-phxXCuSTQpWHu11p7J-UALsTg-alX4piK0bvMG6gI9GaqfN94OZStgL-6vLCBiazUP5N4Kn1ZJAxx2mbX-ZnWhSzhI4Jt9jgFxkAtSu0tbZvcFQGVRYyFgMElzVGScKqWEy/s320/earth-sun-elements-this-image-600w-250729213.webp)
2
इसी प्रकार "ब्रह्म" शब्द के वर्णों को जोड़ने पर , हमें यह प्राप्त होता है --
इस अंक में केवल दो प्राकृतिक संख्याएं हैं -1 और 8 जिनका योग होता है 9, जो कि एक अंक की सबसे बड़ी संख्या है।
3
इस अंक के महान होने का कारण संसार के सर्वोपरी मंत्रों में से एक - "सीता राम " का युगल मंत्र भी है।
जब हम इस मंत्र के मात्राओं और वर्णों का विच्छेदन करते हैं , तो हम यह पाते हैं -
सीता =स+ी +त+ ा
राम=र+ ा +म
स--32 वाँ वर्ण। ी -- ई 4 (चौथा) वर्ण।
त--16 वाँ वर्ण। ा -- आ 2(दूसरा) वर्ण।
योग (जोड़ने पर) =32+4+16+2=54
राम
र--27 वाँ वर्ण ा --आ 2(दूसरा) वर्ण।
म ---25वाँ वर्ण।
योग=27+2+25=54
अतः सीता + राम =54+54=108
4
ब -- 23वाँ वर्ण
र -- 26वाँ वर्ण
ह --33वाँ वर्ण
म --25वाँ व
योग=108
5
जीवों का प्रारब्ध नक्षत्रों एवं राशियों की स्थिति पर निर्भर करता है।
और प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण होते हैं ।
और इस ब्रह्माण्ड में कुल नक्षत्रों कि संख्या है 27।
इस प्रकार सभी नक्षत्रों के कुल चरणों कि संख्या है
(27 × 4)=108
6
जीवों का प्रारब्ध राशियों एवं ग्रहों पर भी निर्भर करता है।
तथा प्रत्येक राशि पर ग्रहों कि एक नियमित चाल होती होती है
और इनका गुणनफल = कुल राशि × कुल ग्रह
=12 × 9 =108
इन्हीं महान कारणों से योगी 108 या 1008 को अत्यंत शुभ मानते हैं और इस संख्या को वही संत लगा सगते हैं जिन्हें सनातन धर्म का संपूर्ण ज्ञान हो।
आशा करता हूं की आपके लिए यह ज्ञानकारी और लाभकरी हो।
सरस्वती के भंडार की बड़ी अपुरब बात ज्यों खर्चे त्यों त्यों बढ़े , बिन खर्चे घटी जात।
धन्यवाद।।
0 Comments